Type Here to Get Search Results !

लोहारी राघो के इस महान कलाकार ने अपने अभिनय से रच दिया था इतिहास, आज भी जीवित है इनका किरदार

               मनोरंजन के बेताज बादशाह लक्ष्मण दास जरगर 

  • पढें पाकिस्तान से आकर लोहारी राघो में बसे सुपर स्टार हास्य कलाकार की दिलचस्प कहानी    
  • महज 12 साल की उम्र में रामलीला में छोटे से अभिनय से की थी शुरुआत 
  • लगातार 42 साल तक रामलीला में निर्देशन के साथ-साथ किया अभिनय                          
  • 40 साल तक जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण लीला ड्रामा का किया शानदार आयोजन 
  • 89 साल की उम्र में 1 फरवरी 2017 को हुआ निधन 

 
संदीप कम्बोज। lohariragho.in               
                              लोहारी राघो। जिनकी एक झलक मात्र से दर्शक हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाते थे। जिनके स्टेज पर आते ही लोग चाय की चुस्कियां आदि छोड़कर पंडाल की ओर दौड़ पड़ते थे। (Laxman-Das-jargar-the king-of-entertainment-at-lohari-ragho) जिनके हर डायलॉग पर पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता था। रामलीला हो या ड्रामा या कोई अन्य कार्यक्रम...सब इनकी कॉमेडी के बिना अधुरा था। अपने अभिनय से लोगों को हँसाने की विलक्षण प्रतिभा के धनी इस प्रख्यात हास्य कलाकार को लोहारी राघो का सुपर स्टार कलाकार कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हँसी-मजाक में बड़ी खूबसूरती से जिंदगी का फलसफा बयान करने का हुनर रखने वाले इस महान कलाकार ने न केवल कॉमेडी को नए आयाम और मायने दिए बल्कि सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में भी भरपूर योगदान दिया। हम बात कर रहे हैं लोहारी राघो रामलीला के जन्मदाता, सबसे मजेदार, लोकप्रिय और प्रभावशाली हास्य कलाकार स्वर्गीय लक्ष्मण दास जरगर की। लोहारी राघो में लगातार 34 साल तक रामलीला व 40 साल तक कृष्ण लीला आयोजन का सारा श्रेय इस महान कलाकार को ही जाता है। लक्ष्मण दास जरगर ने वर्ष 1949 में लोहारी राघो में रामलीला की शुरुआत से लेकर लगातार 34 साल तक रामलीला के निर्देशन के साथ-साथ कॉमेडी को भी नई ऊँचाइयाँ दी। रामलीला में महज औपचारिकता मानी जाने वाली कॉमेडी को उन्होंने न केवल एक अलग और विशेष स्थान दिया बल्कि कॉमेडी को एक नया स्तर और ऊँचाई देने के साथ-साथ यह भी साबित किया कि एक हास्य कलाकार अन्य कलाकारों पर भी भारी पड़ सकता है। रामलीला में कॉमेडी के नए युग की शुरूआत करने वाले इस फनकार कॉमेडियन ने कॉमेडी को रामलीला का अंतरंग हिस्सा बनाया। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा है कि आज भी लोहारी राघो की रामलीला में कॉमेडी का अपना विशेष महत्व है। कॉमेडी विधा का यह बेताज बादशाह आखिर किस तरह से बना लोहारी राघो का प्रख्यात स्टार कलाकार और उन्होंने अपने अभिनय से किस तरह से रचा इतिहास। बता रहे हैं विलेज ईरा मासिक पत्रिका के संपादक संदीप कम्बोज   

लोहारी राघो। वर्ष 2016 की रामलीला में स्टेज पर कलाकारोें के साथ सामूहिक तस्वीर में लक्ष्मण दास जरगर। 

लोहारी राघो। वर्ष 2016 में रिबन काटकर रामलीला का शुभारंभ करते लक्ष्मण दास जरगर। 

पाकिस्तान से शुरु हुआ अभिनय का सफर, 12 की उम्र में निभाया पहला किरदार                                                                      वर्ष 1928 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला मुल्तान में जन्मे लक्ष्मन दास जरगर का परिवार बाद में पंजाब प्रांत के ही जिला झांग स्थित गाँव अहमदपुर सियाल में रहने लगा। वर्ष 1940 में जब वे महज 12 वर्ष के थे तो इसी गाँव अहमदपुर सियाल में आयोजित रामलीला में उन्होंने छोटा सा किरदार निभाया था। यह पहला मौका था जब लक्ष्मण दास जरगर ने स्टेज पर अपनी प्रस्तुति दी थी। रामलीला के इस मंच पर इनकी प्रतिभा को विशेष पहचान मिली। पहली ही बार में दर्शकों से तालियों के रूप में मिले बेइंतहा प्यार ने इनके जोश को कई गुना बढ़ा दिया। 1947 तक लगातार 7 साल तक वे पाकिस्तान के इसी गाँव में रामलीला मंचन व अन्य कार्यक्रमों में प्रस्तुति देते रहे। यह उनके अभिनय की खूबी थी कि दर्शक अकसर अन्य कलाकारों के बजाय उन्हें देखना पसंद करते थे। अगस्त 1947 में भारत-पाक विभाजन के उपरांत वे पाकिस्तान से आकर भारतवर्ष के पंजाब प्रांत(वर्तमान में हरियाणा) के जिला हिसार स्थित गाँव लोहारी राघो आकर बस गए।

हंसराज चांदना के साथ लक्ष्मण दास जरगर(बाएं)

             लोहारी राघो में रामलीला की शुरुआत                                      पाकिस्तान से आकर लोहारी राघो में बसने के उपरांत लक्ष्मण दास जरगर ने अब गाँव में रामलीला मंचन की शुरुआत का  फैसला लिया। लोहारी राघो में रामलीला मंचन के लिए उन्होंने वर्ष 1948 से ही तैयारियां शुरु कर दी थी। मूल रूप से  ज्वैलर्स कारोबारी लक्ष्मण दास जरगर ने पाकिस्तान की रामलीला में अपने साथ अभिनय करने वाले साथी कलाकारों हंसराज चांदना व डॉ. बलदेवराज शर्मा आदि की मदद से वर्ष 1949 में रामा क्लब रामलीला लोहारी राघो का गठन कर रामलीला मंचन को हरी झंडी दे दी। लोहारी राघो के इतिहास में यह पहला मौका था जब यहाँ रामलीला का मंचन किया जा रहा था। लोहारी राघो में रामलीला की शुरुआत 23 सितंबर 1949 शुक्रवार के दिन हुई थी और इस साल 1 अक्तूबर 1949 को गाँव में पहली बार दशहरा पर्व के अवसर पर रावण दहन किया गया था। पहली ही बार में लोहारी राघो की रामलीला जबरदस्त हिट साबित हुई। अपनी कॉमेडी से दर्शकों को दीवाना बनाने वाले मनोरंजन के इस बेताज बादशाह का किरदार अन्य कलाकारों पर भारी नजर आया। 

सुरजीत भेड़गोट के साथ लक्ष्मण दास जरगर(बाएं)

       अभिनय व निर्देशन के वो 68 साल                                      अपने जीवन काल के 68 साल तक रामलीला, ड्रामा व अन्य प्रतियोगिताओं आदि में अभिनय व निर्देशन करने वाले लक्ष्मण दास जरगर की मुख्य पहचान हास्य कलाकार की ही रही। भले ही वे रामा कल्ब रामलीला व कृष्ण लीला के डायरेक्टर रहे हों लेकिन लोगों को उनका कॉमेडियन अवतार ही पसंद आया। वर्ष 1949 से वर्ष 1982 तक लगातार 34 साल वे रामलीला के दर्शकोंं को हंसा-हंसा कर लोट-पोट करते रहे। जैसे ही वे स्टेज पर आते पंडाल किलकारियों व तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता। वर्ष 1978 में उन्हें रामा क्लब रामलीला का डायरेक्टर बना दिया गया। रामलीला के अलावा भी वे अनेक तरह की सांस्कृतिक प्रतियोगिताओंं में भी हिस्सा लेते रहते थे। 

1976 से 2016 तक कृष्ण लीला मंचन                                       वर्ष 1976 में उन्होंने गाँव में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण लीला ड्रामा की शानदार शुरुआत की जो कि वर्ष 2016 तक लगातार 40 साल जारी रहा। कृष्ण लीला मंचन में सभी किरदार स्कूली छात्राओं द्वारा निभाए जाते थे। हर साल जन्माष्टमी से करीब 2 माह पहले से ही कृष्ण लीला के लिए रिहर्सल शुरु हो जाती थी। कृष्ण लीला ड्रामा की सबसे खास बात यह थी कि इसे स्वंय उन्होंने अपनी कलम से लिखा था। उनकी प्रतिभा से जलने वाले गाँव के ही कुछ लोगों द्वारा इस कृष्ण लीला ड्रामा को रूकवाने के लिए अनेक बार षडयंत्र भी रचे लेकिन लक्ष्मण दास जरगर अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए और उन षडयंत्रकारियों को मुंह की खानी पड़ी।                        

 नंदू नाई व चुवन लाई ड्रामा ने दिलाई पहचान, अनेक बार मिला सम्मान                                                                                  हास्य के इस जादूगर द्वारा रचित अनेक कोमिक व ड्रामा ने इस कदर धमाल मचाया कि लोग इन्हें देखकर ही हंसने लगते थे। लक्ष्मण दास जरगर द्वारा रचित नंदू नाई व चुवन लाई ड्रामा दर्शकों की पहली पसंद बन गए थे। राजा हरिश्चंद्र व पृथ्वीराज चौहान के ड्रामे में भी इनके किरदार को सराहा गया। इसके अलावा भी उन्होंने अनेक ड्रामा व कोेमिक स्वंय अपनी कलम से लिखे थे। भले ही इस महान कलाकार को लोहारी राघो की ग्राम पंचायत ने कभी सम्मान न दिया हो लेकिन मनोरंजन के इस बेताज बादशाह ने अनेक बार बड़े मंचों पर सम्मान पाकर लोहारी का मस्तक गर्व से ऊंचा किया। सबसे पहले वर्ष 1962 में कुरुक्षेत्र में आयोजित सूर्य ग्रहण मेले के दौरान लक्ष्मण दास जरगर को सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण आकाशवाणी पर भी हुआ था। तत्पश्चात वर्ष 1965 में नलवा में आयोजित एक सांस्कृतिक प्रतियोगिता में राजा हरिश्चंद्र ड्रामा को प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया था। वहीं वर्ष 1971 में  हांसी के मेम वाले बाग में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान एक पंजाबी नज्म ‘उठो-जागो नौजवानों’ की प्रस्तुति पर तत्कालीन एसडीएम द्वारा इन्हें विशेष तौर से सम्मानित किया गया था। जब वे जीवन के अंतिम पड़ाव में थे तो गाँव लोहारी राघो रामलीला कमेटी को उनकी याद आई  और वर्ष 2016 की रामलीला के दौरान उनका सम्मान किया गया। 

दिलों में हमेशा बसे रहेंगे जरगर                                                                                                                                अपने जीवन के आखिरी दिनों में लक्ष्मण दास जरगर का स्वास्थ्य खराब हो गया। वे इलाज के लिए हिसार गए । 89 वर्ष की आयु में 1 फरवरी 2017 को उनका निधन हो गया। लोगों को हँसाकर लोट-पोट करने वाला यह महान कलाकार नींद के आगोश में बड़ी खामोशी से इस दुनिया से विदा हो गया। भले ही यह महान कलाकार आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका किरदार आज भी जीवंत है, अमर है । lohariragho.in टीम इस महान शख्सिहत को बारम्बार नमन् करती है।    


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad