- 41 दिन तक पांच धुनियों में तपने के बाद बाबा बख्शु शाह धाम पर होगा विशाल भंडारा
प्रवीन खटक । www.lohariragho.in
लोहारी राघो।... माथे पर तिलक, शरीर पर भस्म और बोल बम के साथ साधना। (A-unique-monk-rahesh-puri-ji-came-to-Baba-Bakshu-Shah-Dham-lohari-ragho-from-the-famous-Juna-Akhara-of-Haridwar) तेज और तप ऐसा कि हर कोई नतमस्तक हो जाए। धरती इनका आसन है और आसमान इनका छत्र, इसके अलावा इनके पास ऐसा कुछ भी नहीं दिखता जो इनकी सुविधा में शामिल हो। खुद को तपा कर तेज धारण करना ही इनकी साधना है। गर्मी हो या ठंड हमेशा धूनी के सामने साधनारत। अपनी तपस्या से लोगों को अपनी तरफ आकर्षण करने वाले इन साधुओं में से एक साधु पिछले पाँच दिन से गाँव लोहारी राघो स्थित बाबा बख्शु शाह धाम पर धुनी रमाए बैठे हैं। इस तपती दोपहरी में जहाँ लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल है, ऐसे में यह साधु अपने आसपास कंडे में आग लगाकर(धुनी) तप कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं भारत के सबसे पुराने अखाड़ों में से एक हरिद्वार के जूना अखाड़े से आए साधु बाबा राजेश पुरी की जो पिछले पांच दिन से बाबा बख्शु शाह धाम पर पांच धुनियां लगाकर तपस्या में लीन हैं। गाँव लोहारी राघो व आस-पास के इलाके की सुख-शांति के लिए ही इन्होंने धुनी रमाई है। तपस्या के मकसद बारे पूछने पर बाबा राजेश पुरी जी ने बताया कि इस तप का उ्देश्य सिर्फ इतना है कि परमपिता परमात्मा अपने बच्चों पर हमेशा ठंडी नजर रखें। लोगों पर दया करें। इलाका भरपूर तरक्की करे। लोगों के कारोबार में वृद्धि हो। अज्ञान हटे, ज्ञान बढ़े। बाबा राजेश पुरी जी ने बताया कि वे 41 दिन तक इसी तरह चिलचिलाती धूप में तप करेंगे। तत्पश्चात परमात्मा की इच्छा हुई तो भंडारा लगाकर तपस्या का समापन किया जाएगा। तपस्या में लीन बाबा राजेश पुरी को देखने के लिए यहाँ भक्तों की लाईन लगी है। न ज्यादा बात करना और न लोगों को पास आने देना। अपने में मस्त यह साधु यहाँ आने वाले भक्तों को दिनभर आशीर्वाद दे रहे हैं तथा उनकी समस्याओं के निराकरण का उपाय बता रहे हैं। कोई बेरोजगारी से निदान पाने के लिए चर्चा कर रहा है तो कोई सांसारिक परेशानी का समाधान पूछ रहा है। बाबा राजेश पुरी ने बताया कि वे दूसरी बार लोहारी राघो में आए हैं। करीब 4 साल पहले वे यहाँ किसी कार्यक्रम में जलधारा करने के लिए आए थे।
आईए जानते हैं क्या है जूना अखाड़ा, जहाँ से आए हैं बाबा राजेश पुरी
सनातन धर्म के प्रचार और प्रसार में आदि शंकराचार्य द्वारा चार पीठों-दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में ओडिसा जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ, पश्चिम में द्वारिका शारदा पीठ और उत्तर में बद्रिकाश्रम ज्योतिष पीठ की स्थापना की गई। इन चारों पीठों की रक्षा के निमित्त अखाड़ों का गठन किया गया। प्रमुख तौरपर 13 अखाड़े हैं जिनमें 7 शैव, 3 वैष्णव संप्रदाय और 3 उदासीन अखाड़े हैं। इनमें सबसे पुराना है जूना अखाड़ा जिसकी स्थापना साल 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में हुई थी। अखाड़े के ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं।अखाड़े का केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर है। वर्तमान में भी हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है। अखाड़े से जुड़ने वाले संन्यासी आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। बता दें कि इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं तो मेले में आए श्रद्धालुओं समेत सभी इस अद्भुत दृश्य को देखते रह जाते हैं। जूना अखाड़े की विशालता की बात करें तो कहा जाता है कि करीब 13 अखाड़ों में से जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा है। इस अखाड़े में संन्यासियों की संख्या चार लाख से भी अधिक है। इनमें से अधिकतर नागा साधु हैं। ये भी प्रचलित है कि नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं। वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह ही बंटे हैं। त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दशार्ते हैं।
ऐसा बताते हैं कि हिंदू धर्म के संत अध्यात्मिक गुरु ने उस वक्त अखाड़ों का निर्माण किया जब देश पर कई तरह के आक्रमण हो रहे थे। अखाड़ा शब मल्ल युद्ध के केंद्र से बना है। जहां संतों को धर्म और ज्ञान के साथ शारीरिक श्रम और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा के लिए भी प्रेरित किया जाता है। उनका मानना था कि कसरत और कुश्ती से भी मन मजबूत होता है। बाद में आधुनिक समय के साथ साधुओं के अखाड़ों के स्वरूप भी बदलने लगे। आजादी के बाद अखाड़े ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया। अब वर्तमान में जूना अखाड़ा एक शास्त्रार्थ, बहस और धार्मिक विचार-विमर्श के केंद्र के तौर पर पूरे विश्व में जाना जाता है। जूना अखाड़े की पूरी व्यवस्था अपनी तय प्रणाली पर निर्भर है। यहां साधुओं के 52 परिवारों (सभी साधु) के सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है। ये सभी लोग अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं। इसके अलावा अखाड़े में श्री रामता पंच का भी चुनाव होता है। ये अखाड़े के चल सदस्य होते हैं जो ईष्ट देवता की पूजा करते हैं और अखाड़े की रक्षा करते हैं।
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