महज 9 साल की उम्र में टूटा दु:खों का पहाड़, ‘स्पेनिश फलु’ महामारी ने छीन लिया माँ-बाप का साया
जीवन एक संघर्ष है। कभी प्रकृति के साथ, कभी स्वंय के साथ तो कभी परिस्थितियों के साथ। तरह-तरह के संघर्षों का सामना आए दिन हम सबको करना पड़ता है और इनसे जूझना होता है। जो इन संघर्षों का सामना करने से कतराते हैं, वास्तव में वे हार जाते हैं और जमाने के साथ-साथ इतिहास भी उन्हें नजरअंदाज करता है। हर सफल इंसान के जीवन में एक संघर्ष की कहानी जरुर होगी। आज हम आपको गाँव लोहारी राघो की जिस शख्सिहत की कहानी बताने जा रहे हैं वे भी संघर्ष की पराकाष्ठा हैं। गाँव लोहारी राघो के इतिहास में संघर्ष का दूसरा नाम है प्रहलाद सिंह सैनी। आजाद हिन्दुस्तान में लोहारी राघो के सबसे पहले नंबरदार बनने का गौरव अपने नाम करने वाले प्रहलाद सिंह सैनी का पूरा जीवन ही संघर्ष के नाम रहा। वर्ष 1909 में गाँव लोहारी राघो निवासी सिंघ राम सैनी के घर जन्मे प्रहलाद सिंह की बहादुरी व ईमानदारी के चर्चे दूर-दराज तक थे। महज 9 साल की उम्र में ही दु:खों का ऐसा पहाड़-टूटा जिसे जानकर आपके भी होश उड़ जाएंगे। माता-पिता, भाई-बहनोें समेत अनेक सगे-संबंधियों का साया सिर से जाता रहा। पूरे गाँव लोहारी राघो मेें भी सैकड़ों मौतें हुई थी उस साल। हुआ यूं कि वर्ष 1918 में ‘स्पेनिश फलु’ नामक महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। कोरोना वायरस से भी जानलेवा इस वायरस की चपेट में आने से दुनियाभर में करोड़ों लोगों की जानें गई थी। ‘स्पेनिश फलु’ नामक इस खतरनाक वायरस ने गाँव लोहारी राघो में भी सैकड़ों लोगों को लील लिया था। इस आपदा में प्रहलाद सिंह सैनी के सिर से भी माँ-बाप, भाई बहनों का साया चला गया।
बुआ ने दिया सहारा, जींद के गाँव तलौडा में गुजारे 20 साल
मात्र 9 साल की आयु में ही प्रहलाद सिंह अनाथ हो गए थे। मुसीबत की इस घड़ी में बालक प्रहलाद को इनकी बुआ ने सहारा दिया और अपने साथ जींद के गाँव तलौडा ले गई। करीब 20 साल तक प्रहलाद सिंह गाँव तलौडा में ही रहे। अब वे 30 साल के गभरु-जवान हो चुके थे। अब प्रहलाद सिंह ने गाँप लोहारी राघो का दोबारा रुख किया और अपनी खेती-बाड़ी संभालने लगे। अब प्रहलाद सिंह शादी के बंधन में भी बंध चुके थे। उनका ज्यादा समय अपनी बुआ के गाँव तलौडा में ही व्यतीत हो रहा था। गाँव लोहारी में तो बस खेती-बाड़ी संभालने के लिए ही आना होता था।
इस तरह बने गाँव लोहारी राघो के सबसे पहले हिन्दु नंबरदार
धीरे-धीरे समय बीतता गया। वर्ष 1947 में भारत विभाजन से थोड़ा समय पहले ही वे दोबारा से गाँव लोहारी राघो में आकर रहने लगे थे। विभाजन के उपरांत मुसलमानों से गाँव लोहारी राघो को खाली करवाने के लिए ब्रिटिश सेना द्वारा अटैक कर कत्ले-आम मचाया गया था। मुसलमान जब गाँव छोड़कर पाकिस्तान जा रहे थे, उसी दौरान ही प्रहलाद सिंह सैनी को गाँव लोहारी राघो का नंबरदार नियुक्त किया गया था। आजाद भारत के लोहारी राघो में पहले हिन्दु नंबरदार होने का गौरव प्रहलाद सिंह सैनी को मिला। यह बात शायद गाँव लोहारी राघो के इक्का-दुक्का लोगों को ही पता है। प्रहलाद सिंह सैनी को नंबरदार नियुक्त करने की वजह उस समय गाँव में सबसे ज्यादा पाँच एकड़ से भी अधिक जमीन इनके पास थी। बाद में वर्ष 1955 व 60 के दरमियान प्रहलाद सैनी ने अपनी पाँच एकड़ जमीन को बेचकर 14 एकड़ जमीन खरीद ली। यहाँ उल्लेखनीय है कि जिस समय प्रहलाद सिंह सैनी गाँव लोहारी राघो के नंबरदार नियुक्त हुए थे, उस समय तक पंजाबी/ अरोड़ा, कम्बोज व सिख परिवारों का आगमन लोहारी राघो में नहीं हुआ था।
प्रहलाद सैनी ने इस तरह बदला लोहारी राघो का भूगोल
19 अक्तूबर 1947 को ब्रिटिश सेना द्वारा गाँव लोहारी राघो से मुसलमानों को खदेड़कर गाँव से निकाला गया। तत्पश्चात पाकिस्तान से विस्थापित होकर आने वाले कम्बोज, अरोड़ा, खत्री व सिख समाज के लोगों को यहाँ आबाद करना एक बड़ी चुनौती व जिम्मेदारी का काम था। प्रहलाद सिंह सैनी ने आगे आकर तत्कालीन तहसीलदार व पटवारी के सहयोग से पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए सभी परिवारों को यहाँ आबाद करवाने में अहम भूमिका निभाई। बताते हैं कि अक्तूबर 1947 में जब मुस्लिम परिवार यहाँ से छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे और आधे से ज्यादा गाँव सुनसान हो गया था तो नए आने वाले लोगों तथा कुछ यहाँ के लोकल स्थानिय बाशिंदों द्वारा यहाँ की पंचायती/सरकारी जमीन पर खड़े हरे-भरे वृक्षों को काटकर अवैध कब्जे करने का खेल शुरु कर दिया गया था। जिन पंचायती/सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे किए जा रहे थे, यह उन्हें सरकार द्वारा अलॉट की गई जमीन से अलग थी जो कि गैरकानूनी था। इस पर नंबरदार प्रहलाद सैनी ने बड़ी ही सूझ-बूझ के साथ जिला प्रशासन की मदद से न केवल हरे-भरे पेड़ों को कटने से रुकवाया बल्कि अवैध कब्जा करने वालों के अरमानों पर भी पानी फेरा।
कार से भी तेज चलते थे लोहारी के पहले नंबरदार, गाँव के कामों के लिए हांसी-भिवानी तक लगाते थे पैदल चक्कर
आजादी के समय गाँव लोहारी राघो जिला हिसार की तहसील हांसी का हिस्सा हुआ करता था और जिला की सभी तहसीलों का मुख्यालय भिवानी में था। उर्दू की कविताएं व गाने सुनने के शौकिन रहे गाँव लोहारी राघो के पहले नंबरदार प्रहलाद सिंह सैनी गाँव के हर तरह के प्रशासनिक सरकारी कार्यों के लिए हांसी तथा भिवानी के चक्कर लगाते रहते थे। यह वो कठिन दौर था जब यातायात का कोई साधन नहीं था। इसलिए गाँव के हर तरह के कामों के लिए रोजाना 60-70 किमी. पैदल चलकर ग्रामीणों को हांसी, हिसार तथा भिवानी तक पैदल ही जाना पड़ता था। प्रहलाद सिंह सैनी भी गाँव लोहारी राघो से संबंधित कामों के लिए कभी हांसी, कभी भिवानी तो कभी हिसार तक पैदल ही आते थे। गाँव में माल एकत्रित करने से लेकर अनेक तरह के कामों की जिम्मेदारी नंबरदारों के ही कंधों पर थी। चूंकि अभी तक देश में न ही तो पंचायती राज व्यवस्था कायम हुई थी और न ही कोई पंचायत चुनाव और न ही किसी पंचायत का गठन। प्रहलाद सिंह सैनी की खासियत थी कि उनकी पै दल चलने की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि बाईक व कार भी पीछे छूट जाए।
नंबरदारी से त्यागपत्र देकर तहसील में दान कर आए थे पाँच रुपए, पढ़ें ईमानदारी की मिसाल का रोचक किस्सा
बेहद ही ईमानदार व्यक्तित्व के धनी रहे नंबरदार प्रहलाद सिंह सैनी जब (वर्ष लगभग 1971-72) में लोहारी राघो की नंबरदारी से त्यागपत्र देने हांसी तहसील गए थे तो तत्कालीन तहसीलदार को सारा लेखा-जोखा यानि रिकॉर्ड सौंप दिया था। इस दौरान जब तहसीलदार द्वारा हिसाब-किताब किया गया तो पाँच रुपए प्रहलाद सिंह सैनी के बच रहे थे। लेकिन उन्होेंने लेने से मना कर दिया और कहा कि ये अपने पाँच रुपए वे सरकार को दान कर रहे हैं। आपको बता दें कि उस जमाने में इन पाँच रुपए की कीमत भी आज के हजारों रुपए के बराबर हुआ करती थी। प्रहलाद सिंह सैनी के सुपुत्र महाबीर सैनी बताते हैं कि उनके पिता जी द्वारा गाँव की नंबरदारी छोड़ने के पीछे की मुख्य वजह तहसील कार्यालय का दूर होना था क्योंकि उम्र भी करीब 63-64 साल हो चुकी थी। रोजाना इतनी दूर पैदल चलना अब उनकी सेहत के लिए सही नहीं था। बस, इसी वजह से उन्होंने नंबरदार के पद से इस्तीफा दे दिया। महाबीर सिंह बताते हैं कि पिता जी के इस्तीफा देने के कुछ साल बाद हांसी में तहसीलदार ने चौकीदार के द्वारा संदेशा भेज उनके पिता प्रहलाद सिंह को दोबारा तहसील कार्यालय बुलवाया। जब प्रहलाद सिंह हांसी तहसील में पहुंचे तो तहसीलदार ने उनके पाँच रुपए वापिस लेने की बात कही। तो उन्होंने कहा कि वे इस पैसे को दान कर चुके हैं, अब बिल्कुल वापिस नहीं लेंगे। जिस पर तहसीलदार समेत पूरे स्टाफ ने उनकी ईमानदार की खूब प्रशंसा की थी।
नारनौंद में तहसील बनने के बाद बेटे को नंबरदार बनाने का भी मिला था आफर
लोहारी राघो के पहले नंबरदार प्रहलाद सिंह के सुपुत्र महाबीर सिंह सैनी बताते हैं कि वर्ष 1979 में जब नारनौंद में तहसील स्थापित हुई तो गाँव लोहारी राघो नारनौंद तहसील का हिस्सा बन गया। नारनौंद में कार्यभार संभालने वाले तहसीलदार ने जब गाँव लोहारी राघो के नंबरदारों का रिकॉर्ड देखा तो एक बार फिर पूर्व नंबरदार प्रहलाद सिंह सैनी के पाँच रुपए बकाया का किस्सा सुर्खियों में आ गया। नारनौंद के पहले तहसीलदार ने भी चौकीदार के माध्यम से प्रहलाद सिंह सैनी को तहसील में बुलवाया और उन्हें उनके पाँच रुपए बकाया होने की बात याद दिलाते हुए उन्हें वापिस लेने की बात दोहराई। लेकिन यहाँ भी प्रहलाद सिंह सैनी ने अपने दान दिए पाँच रुपए लेने से साफ इनकार कर दिया। प्रहलाद सिंह की ईमानदारी देख तहसीलदार इतना प्रसन्न हुआ कि उन्हें अपने परिवार के किसी दूसरे सदस्य को नंबरदार बनाने का आॅफर दे डाला। प्रहलाद सिंह के पाँच बेटे व एक बेटियाँ हैं जिनमें पृथ्वी सिंह सैनी, महाबीर सिंह सैनी, गोपाल सैनी, हरीकृष्ण सैनी तथा कृष्ण व एक बेटी रामरति हैं। प्रहलाद सिंह सैनी का सिर्फ एक सबसे छोटे बेटे कृष्ण सैनी ने ही कक्षा 10 तक पढ़ाई की थी। तहसीलदार ने कृष्ण सैनी को नंबरदार बनाने का प्रस्ताव रखा लेकिन कृष्ण सैनी द्वारा नंबरदारी में रुचि न लिए जाने पर वे नंबरदार नहीं बन पाए।
102 साल की आयु में हुआ निधन
20 जुलाई 2011 को 102 साल की आयु में गाँव लोहारी राघो की इस महान शख्सिहत का निधन हो गया। वे अपने पीछे भरा-पुरा परिवार छोड़ गए हैं। आज उनके परिवार में करीब तीन दर्जन से भी अधिक सदस्य हैं। गाँव लोहारी राघो प्रहलाद सिंह सैनी द्वारा गाँव के लिए किए गए ऐतिहासिक व सेवा कार्यों को कभी भुला नहीं पाएगा। ऐसी महान शख्सिहत को दिल से सलाम...
वर्ष 1947 से पहले गाँव लोहारी के नंबरदार (जहाँ तक हमें पता चला है)
1. यूनुस खान
2. बाजा
वर्ष 1947 के बाद गाँव लोहारी राघो के नंबरदार
1. प्रहलाद सिंह सैनी उर्फ प्रहलादा नंबरदार(प्रथम)
2. चंदगी राम
3. बृजपाल भ्याना
4. शोभराज भ्याना
5. लाजपत भ्याना
6. किशोर लाल भ्याना
7. कुशालचंद कम्बोज
8. हंसराज चांदना (वर्तमान में)
9. सतपाल गिनोत्रा (वर्तमान में)
10. मांगेराम (वर्तमान में), योगराज (सरबराहा)
11. रमेश कम्बोज (वर्तमान में)
12. राजकुमार धमीजा(वर्तमान में)
13. नरेंद्र भ्याना (वर्तमान में), मनीष भ्याना (सरबराहा)
14. कृष्ण कुमार भ्याना (वर्तमान में)
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