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लोहारी राघो Exclusive : ये हैं लोहारी राघो के सबसे पहले सरपंच, 1952 में विनोद भ्याना के दादा रामलाल भ्याना को हराकर हासिल की थी सरपंच की कुर्सी, पढ़ें पहले पंचायत चुनाव की रोचक कहानी

  • 1950 के दशक में सबसे पहले सरपंच ने ही रखी थी लोहारी राघो राजकीय प्राईमरी पाठशाला की नींव, हांसी वाले जोहड़ में इन्होंने ही खुदवाया था ऐतिहासिक कुंआं 
  • लोहारी राघो में अब तक सबसे ज्यादा उम्र में सरपंच बनने का रिकॉर्ड भी सुधन सैनी के नाम

 

लोहारी राघो। क्या आप जानते हैं गाँव लोहारी राघो के पहले सरपंच कौन थे ? शायद यह जानकारी बहुत कम ग्रामीणों को होगी और आज की युवा पीढ़ी को तो बिल्कुल भी नहीं। (First-Sarpanch-of-Lohari-Ragho-Sudhan-saini) तो चलिए आज हम आपको बताते हैं गाँव लोहारी राघो के सबसे पहले सरपंच के बारे में। गाँव लोहारी राघो के सबसे पहले सरपंच थे सुधन सैनी जिन्होंने वर्ष 1952 में हुए पहले पंचायत चुनाव के दौरान विधायक विनोद भ्याना के दादा रामलाल भ्याना को पराजित कर पहले सरपंच का रिकॉर्ड अपने नाम किया। गाँव लोहारी राघो में चुने गए अब तक के सरपंचों में सबसे ज्यादा उम्र में सरपंच चुने का रिकॉर्ड भी सुधन सैनी के नाम है। क्योंकि जिस समय उन्हें सरपंच चुना गया था, उस वक्त सुधन सैनी की उम्र 63 साल हो चुकी थी। गाँव लोहारी राघो की प्राथमिक पाठशाला तथा हांसी वाले जोहड़ में स्थित ऐतिहासिक कुंएं का निर्माण सुधन सैनी के कार्यकाल में उनकी ही देख-रेख में हुआ था। हालांकि सुधन सैनी ने सरपंची से बीच में ही त्यागपत्र देते हुए रत्तन लाल चावला को जिम्मेवारी सौंप दी थी। सुधन सैनी के कार्यकाल के दौरान भी रत्तन लाल चावला उन्हें पंचायती कार्यों में सहायता करते रहते थे। लोहारी राघो एक्सक्लूसिव में आज पढ़ें लोहारी राघो के पहले सरपंच सुधन सैनी की कहानी। बता रहे हैं विलेज ईरा के संपादक संदीप कम्बोज  

1889 में हुआ जन्म, चार भाईयों में सबसे बड़े थे सुधन सैनी
वर्ष 1889 में गाँव लोहारी राघो निवासी दयोत राम सैनी के घर माता सूरजा देवी की कोख से जन्मे सुधन सैनी चार भाईयों क्रमश: सुधन सैनी, दयालु राम, अमीलाल व सरदारा सिंह में सबसे बड़े थे। हंस-मुख, शांत, सरल स्वभाव और हर किसी से प्रेम-प्यार का व्यवहार उनके व्यक्तित्व की असली पहचान थी। खेती-बाड़ी व पशुपालन कर जीवन यापन करने वाले सुधन सैनी भाईचारे की भी गजब मिसाल थे। गाँव अलेवा निवासी मनसो देवी के साथ विवाह बंधन में बंधने के उपरांत उनके घर दो बेटों हरफुल सिंह व बीरबल तथा दो बेटियों शांति देवी व माया देवी ने जन्म लिया। बता दें कि बीरबल सैनी भी पूर्व पंचायत में पंच रह चुके हैं।

इस तरह चुने गए पहले सरपंच, पंच टेकचंद कम्बोज के वोट ने दिलाई थी जीत
 आजादी के बाद वर्ष 1952 में भारतवर्ष में पहला पंचायत चुनाव हुआ था। उस समय तक हरियाणा राज्य का गठन नहीं हुआ था और गाँव लोहारी राघो पंजाब राज्य के जिला हिसार की हांसी तहसील का हिस्सा था। लोहारी राघो में भी वर्ष 1952 में पंजाब ग्राम पंचायत एक्ट-1952 के तहत पहला पंचायत चुनाव हुआ था। उस समय पंच ही मिलकर सरपंच का चुनाव करते थे। इस चुनाव में कुल 8 पंचायत सदस्य चुने गए थे जिनमें एक सुधन सैनी भी थे। चुनाव अधिकारी ने जब सरपंच चुनाव की प्रक्रिया शुरु की तो सबसे पहले सुधन सैनी ने दावेदारी पेश की। मुकाबले में थे रामलाल भ्याना (लोहारी राघो के सबसे लंबे समय तक सरपंच रहे महेश भ्याना के पिता व हांसी विधायक विनोद भ्याना के दादा) चुनाव पर्यवेक्षक ने दोनों सरपंच उम्मीदवारों को सामने खड़ा कर दिया और निर्वाचित पंचों को निर्देश दिए कि वे जिसे सरपंच चुनना चाहते हैं उसी उम्मीदवार की लाईन के सामने आकर खड़े हो जाएं। इस पर सुधन सैनी की लाईन में चार पंच और रामलाल भ्याना की लाईन में तीन पंच आकर खड़े हो गए। एक निर्वाचित पंच थे टेकचंद कम्बोज पुत्र जीवनदास कम्बोज जो अभी किसी भी लाईन में खड़े नहीं हुए थे। अब हार-जीत का फैसला टेकचंद कम्बोज के ऊपर ही आकर रुक गया था। काफी देर सोच-विचार के बाद टेकचंद कम्बोज आखिरकार सुधन सैनी की लाईन के सामने आकर खड़े हो गए। चुनाव पर्यवेक्षक ने एक वोट के बहुमत से सुधन सैनी को लोहारी राघो का पहला सरपंच मनोनित कर दिया। तो सुधन सैनी इस तरह से लोहारी राघो के पहले सरपंच चुने गए थे। 

  गाँव लोहारी राघो स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला जिनकी नींव वर्ष 1952-53 में गाँव के पहले सरपंच सुधन सैनी द्वारा रखी गई थी। आजादी से पहले यह पाठशाला बाबा बंदा सिंह बहादुर गुरुद्वारा की जगह मौजूद मस्जिद में स्थित थी। आजादी के बाद इसे गाँव में जहाँ आज उप स्वास्थ्य केंद्र है,वहाँ स्थानांतरित किया गया था। 1982-83 तक कुछ कक्षाएं यहाँ भी चलती रही और जो अब वर्तमान में राजकीय प्राथमिक पाठशाला है, वहाँ भी।

निष्पक्षता व निडरता की गजब मिसाल
सरपंच चुने जाने के बाद सुधन सैनी ने पूरी जिम्मेदारी से गाँव के पंचायती कार्यों को रफ्तार दी। उस समय गाँव में होने वाले विवादों का समाधान पंचायत स्तर पर ही किया जाता था। सुधन सैनी अपना फैसला पूरी निष्पक्षता व निडरता से लेते थे। उन्होंने गाँव लोहारी राघो की प्राथमिक पाठशाला की नींव रखी साथ ही हांसी वाले जोहड़ में स्थित ऐतिहासिक कुंएं का भी निर्माण करवाया। भले ही यह कुंआं आज खंडहर में तब्दील चुका है लेकिन पांच दशक तक ग्रामीणों के लिए पेयजल का मुख्य स्त्रोत यही ऐतिहासिक कुंआ रहा है।

गाँव लोहारी राघो स्थित ऐतिहासिक हांसी वाले जोहड़ में स्थित इस ऐतिहासिक कुंएं की खुदाई भी गाँव के पहले सरपंच सुधन सैनी द्वारा करवाई गई थी। 1950 के दशक से लेकर वर्ष 2000 तक भी ग्रामीण इस कुुंएं का पानी इस्तेमाल करते थे। पहले गाँव में पेयजल का एकमात्र स्त्रोत यही ऐतिहासिक कुंआं ही हुआ करता था। पूरे गाँव के लोग इसी कुंएं से पानी भरते थे। बुजुर्गों की मानें तो आज से 30-35 साल पहले तक भी यहाँ लंबी-लंबी लाईनें दिखाई देती थी।

जब नारनौंद थानेदार खुद घर वापिस करने आया था डकैती का माल
बताते हैं कि उस समय सुधन सैनी के नाम का इलाके में पूरा डंका बजता था। जब वे सरपंच थे तो उस समय परिवहन के कोई साधन नहीं होते थे। लोगों को एक-दूसरे गाँवों-शहरों में पैदल ही जाना पड़ता था। लोहारी राघो आने वाली सभी सड़कें भी कच्ची होती थी और रास्ते में घने जंगल, बीड़ हुआ करते थे। लुटेरों-डकैतों का पूरा तांडव था। सुनसान रास्तों में डाकू यात्रियों से पैसे, जेवर आदि लूट लिया करते थे। एक बार की बात है। जब सुधन सैनी गाँव के सरपंच थे तो इनके कोई रिश्तेदार गाँव लोहारी राघो में आ रहे थे। बीच रास्ते जंगल में डकैतों ने उन्हें रोक लिया और महिलाओं से सोने-चांदी के जेवर व पैसे-नकदी सब लूट ली। जब इस बारे तत्कालीन नारनौंद थाना प्रभारी को पता चला तो उन्होंने उन डाकूओं को पकड़ा और उनसे लूट का पैसा व जेवर आदि बरामद कर खुद गाँव लोहारी राघो में सरपंच सुधन सैनी के घर चलकर आया और उनके रिश्तेदारों से लूटा गया सामान लौटाया। इस घटना से पता चलता है कि उस जमाने में सुधन सैनी की इलाके में पूरी धाक थी।वर्ष 1985 में 96 साल की उम्र में सुधन सैनी का निधन हो गया। वर्तमान में इनके पोते पवन कुमार दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम में कार्यरत हैं जबकि विजय सैनी व सुनील सैनी निजी कंपनियों में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

जानें लोहारी राघो के अब तक के सरपंचों के बारे में (1952-2022)

  • 1952-55             सुधन सैनी
  • 1955-58           रत्तन चंद चावला
  • 1958-61           रत्तन चंद चावला
  • 1961-64           रत्तन चंद चावला
  • 1964-69           रत्तन चंद चावला
  • 1969-71           रत्तन चंद चावला
  • 1971-77               महेश भ्याना
  • 1977-82               महेश भ्याना
  • 1982-87               महेश भ्याना
  • 1987-1989           लाजपत भ्याणा
  • 1989-1990           प्यारेलाल चावला
  • 1990-1991           विनोद भ्याणा
  • 1991-1994           विनोद भ्याणा
  • 1994-1999           अजीत सिंह
  • 1999-2006           ध्यान सिंह
  • 2006-2011           सुदेश सैनी
  • 2011-2016          ओमप्रकाश वाल्मीकि
  • 2016-2022          चंद्रकांता चांदना
  • 2022 ......             सोनू सरोहा

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