- ग्राम पंचायत, स्थानीय प्रशासन व सरकार को नहीं कोई सरोकार
लोहारी राघो। देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की परवाह किए बिना लड़ाई लड़ने वाले सैनिकों के परिवारों का आज क्या हश्र है, इस पर न ही तो सरकार का ध्यान है और न ही किसी समाजसेवी संगठन व राजनेताओं का।(This-is-the-real-hero-of-Lohari-Ragho-Muthara-Das-Dhanak-a-soldier-of-Azad-Hind-Fauj) स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के अवसर पर देशभक्ति गीतों पर दिखावटी टेंसूए बहाने वाले नेताओं, अधिकारियों व जन प्रतिनिधियों को हमारे शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों व उनके परिवारों, आश्रितों की कितनी फिक्र है, यह तस्वीर देखेंगे तो आप खुद-ब-खुद समझ जाएंगे कि जमीनी हकीकत आखिर क्या है। देश की आजादी की जंग में लड़ने वाले सैनिकों के परिवार आज मजदूरी कर गुजर-बसर करने को मजबूर हैं। गरीबी इतनी कि मात्र एक छोटे से कमरे में भरा-पुरा परिवार रह रहा है और सबसे बड़ी बात घर में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं। शौच के लिए भी इस सैनिक परिवार को बाहर खुले में जाना पड़ रहा है। एक दिन मजदूरी पर न जाएं तो परिवार के भूखों-मरने की नौबत आ जाए। जी हाँ! यही कड़वा सच है आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे जिला हिसार के तहसील नारनौंद के गाँव लोहारी राघो निवासी मुथरा दास बूरा के परिवार का जिन्होंने फौज में शामिल होकर भारत की आजादी के लिए जंग लड़ी और आज इनका परिवार दाने-दाने का मोहताज हो गया है। वर्ष 2002 में मुथरा दास बूरा के निधन के बाद आज ऐसी नौबत आन पड़ी है कि सिपाही के बेटों को पेट भरने के लिए दूसरों के खेतों व घरों में मजदूरी करनी पड़ रही है क्योंकि परिवार के पास खुद की जरा भी जमीन नहीं है।
गाँव गुराना में हुआ जन्म, 1943 में आजाद हिंद फौज में भर्ती
मुथरा दास बूरा का जन्म वर्ष 1919 में जिला हिसार के गाँव गुराना में चुड़िया राम के घर हुआ था। मुथरा दास अपने तीन भाईयों क्रमश: गुलजारी लाल, मामू, मुथरा, रुड़ा राम में तीसरे नंबर पर थे। उस समय देश में अंग्रेजों का साम्राज्य था। मुथरा दास अपने पिता से महारानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और सुभाषचंद्र बोस की वीरता और साहस से भरी कहानियां सुनते थे। पिता चुड़िया राम से देश प्रेम की कहानियां सुनते-सुनते उनमें देश के लिए ऐसा प्रेम बढ़ा कि वह बचपन में ही क्रांतिकारियों के संपर्क में रहने लगे। इस दौरान उन्हें पता चला कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की है और इसके लिए भर्ती चल रही है तो उन्होंने भी फौज में भर्ती होकर देश सेवा का मन बना लिया। 24 साल की उम्र में विवाह बंधन में बंधने के उपरांत नवंबर 1943 में वे आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए जिसका आर्मी नंबर178026 ईएक्स-एसईपी है। मुथरा दास के साथ इनके सबसे छोटे भाई रुड़ा राम भी आजाद हिंद फौज में भर्ती हुए थे।
द्वितीय विश्व युद्ध से लौटते समय बाएं पैर में आ गया था फैक्चर
वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बर्मा युद्ध के लिए आजाद हिंद फौज के सैनिकों को बुलावे का संदेशा भेजा तो मुथरा दास भी युद्ध के लिए गए थे। परिजन बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के उपरांत वे समुद्री जहाज से वापिस भारत लौटे थे। भारत में कोलकाता बंदरगाह पर पहुंचने के उपरांत सैनिकों को जब बस के द्वारा हरियाणा लाया जा रहा था तो बस दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से उनके बाएं पैर में फैक्चर आ गया था। वे बताते हैं कि जब मुथरा दास को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विमान दुर्घटना में मारे जाने की सूचना मिली थी, वे उस समय बहुत रोए थे। कई दिन तक खाना नहीं खाया था।
पुर्नविवाह के उपरांत अपनी ससुराल लोहारी राघो आकर रहने लगे थे मुथरा दास
आजादी के करीब 10-12 साल बाद फौज से सेवानिवृत्ति के उपरांत वर्ष 1958 में वे वापिस अपने गाँव गुराना लौट आए लेकिन तब तक उनकी पत्नी का निधन हो चुका था। अब परिजनों को मुथरा दास के पुर्नविवाह की चिंता सताने लगी। परिजनों ने गाँव लोहारी राघो निवासी सीरिया राम की पुत्री परमेश्वरी देवी से मुथरा दास का दोबारा विवाह कर दिया। पुर्नविवाह के उपरांत वर्ष 1960 में मुथरा दास अपनी ससुराल गाँव लोहारी राघो आकर रहने लगे और यहीं स्थाई निवास बना लिया। कड़ी मेहनत-मजदूरी करके जैसे-तैसे घोर गरीबी में गुजर-बसर चल रहा था। वर्ष 2002 में 83 साल की उम्र में मुथरा दास का निधन हो गया। इसके ठीक 11 साल बाद वर्ष 2013 में मुथरा दास की धर्मपत्नी परमेश्वरी देवी भी चल बसी।
मुफलिसी में जीवन व्यतीत कर रहा सैनिक मुथरा दास का परिवार
सैनिक मुथरा दास के निधन के उपरांत परिवार पर घोर संकट आन पड़ा और पूरा परिवार आज मुफलिसी में जीवन व्यतीत कर रहा है। वजह है घोर गरीबी और परिवार के पास आय का कोई स्त्रोत न होना। क्योंकि मुथरा दास के पास खेती के लिए बिल्कुल भी जमीन नहीं थी। फौज से आने के उपरांत वे खुद दूसरों के खेतों में मजदूरी करके परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। वर्तमान में मुथरा दास के तीन बेटे हैं जिनमें सबसे बड़ा बेटा 60 वर्षीय सूरजभान मानसिक तौर पर विक्षिप्त है। छोटा बेटा 46 वर्षीय बीर सिंह पिछले 6 साल से हांसी स्थित वीराट नगर में रह रहे हैं तथा मेहनत-मजदूरी करके परिवार का पेट पाल रहे हैं। मुथरा दास का सबसे छोटा बेटा बलवान सिंह गाँव लोहारी राघो में ही रह रहे हैं तथा ये भी दूसरों के खेतों व घरों में मजदूरी करके बच्चों का पेट भरने को मजबूर है।
मजदूरी न मिले तो भूखे सोते हैं बच्चे, परिजनों को सरकार, प्रशासन व ग्राम पंचायत से सहायता न मिलने की टीस
मुथरा दास के बेटों को मलाल है कि उनके पिता ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना आजादी की जंग में लड़ाई लड़ी, लेकिन सरकार व जिला प्रशासन ने उनके परिवार की अनदेखी की है। उनके मन में रह-रह कर इस बात की टीस उठती है कि सरकार सैनिकों के परिवारों को कैसे भुला सकती है। मुथरा दास के सबसे छोटे बेटे बलवान सिंह ने बताया कि मजदूरी भी कभी-कभार मिल पाती है। अगर मजदूरी न मिले तो बच्चे भूखे सोते हैं। उन्होंने कहा कि आज तक न ही तो सरकार के स्तर पर कोई मदद मिली है और न ही स्थानीय प्रशासन, नेताओं व ग्राम पंचायत की तरफ से। वे बताते हैं कि मात्र एक छोटे से कमरे में पूरा परिवार रह रहा है। यह कमरा भी उनके रिश्तेदारों व सगे-संबंधियों ने मदद करके बनवाकर दिया है। उनके मंदबुद्धि भाई समेत पूरे 6 सदस्य इसी छोटे से कमरे में रह रहे हैं। बलवान बताते हैं कि उनके सभी बच्चे गाँव लोहारी राघो के सरकारी स्कूल में ही अध्ययनरत हैं। सबसे बड़ी लड़की पायल 9वीं कक्षा में तो मुस्कान कक्षा चौथी में पढ़ रही है।
आजाद हिंद फौज के सिपाही के घर आज तक भी शौचालय नहीं
मोदी सरकार भले ही स्वच्छ भारत मिशन की सफलता का ढ़िंढ़ोरा पिटती आ रही हो लेकिन आजाद हिंद फौज के सिपाही मुथरा दास के घर में आज तक भी शौचालय नहीं हैं। घर में शौचालय निर्माण के लिए वे पिछले कई साल से अब तक ग्राम सरपंच, पंचों व सरकारी अधिकारियों के पास चक्कर काट-काट कर थक चुके हैं लेकिन अभी तक भी उनके घर में शौचालय नहीं बनवाया गया है। आजाद हिंद फौज के सिपाही मुथरा दास के बेटे बलवान ने सरकार व स्थानीय प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है ताकि उनका परिवार भी बेहतर जीवन यापन कर सके।
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