संदीप कम्बोज । www.lohariragho.in
लोहारी राघो। कहा जाता है कि लोहारी राघो मुस्लिम बाहुल्य गाँव रहा है। लेकिन कुछ लोग इसे हिंदुओं द्वारा बसाया गया गाँव मानते हैं। (Did-Hindus-settle-the-village-Lohari-Ragho-after-all-what-is-the-whole-truth? ) एक दावे के अनुसार आधुनिक लोहारी राघो के दोबारा आबाद होने का समय 15 वीं-16वीं शताब्दी बताया जा रहा है। दावा है कि हिंदू नाई समाज के लोगों ने इसे बसाया जिनके वंशज आज भी इस गाँव में मौजूद हैं। गाँव में रहने वाले भट्टी गोत्र के वंशज राजकुमार भट्टी के दावे को यदि सच मान लिया जाए तो आधुनिक लोहारी राघो को हिंदुओं ने बसाया था न
कि मुसलमानों ने। मुस्लिम परिवार बाद में यहाँ आकर बसे थे।
राजकुमार भट्टी की मानें तो लोहारी राघो के दोबारा आबाद होने की कहानी जून 1576 में राजस्थान में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद से शुरू होती है। राजकुमार भट्टी का दावा है कि वे आधुनिक लोहारी राघो के बसने की कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं। उनके पिता गुगन राम भाटी ने उन्हें इस बाबत बताया था और उनके पिता को पूर्व के वंशजों से यह जानकारी मिली। वे बताते हैं कि हल्दीघाटी की लड़ाई में सैकड़ों मौतों के बाद कोहराम मचा था। इस युद्ध के बाद अकबर की मुगल सेना ने इलाके में हिन्दुओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए थे। तो इसी भय के चलते उदयपुर, जोधपुर, जैसलमेर व बाड़मेर समेत राजस्थान के अनेक इलाकों से लाखों लोगों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन कर लिया था। यह पलायन हल्दीघाटी युद्ध के बाद अगले 10-20 साल तक जारी रहा। इस दौरान जैसलमेर से भाटी व भट्टी गौत्र के लोगों ने भी बड़ी तादात में पलायन किया था। लोहारी राघो को बसाने वाले भट्टी गौत्र के लोग भी जैसलमेर से इसी कालखंड के दौरान आए थे। राजकुमार भट्टी के दावे के अनुसार जैसलमेर से पलायन करने के उपरांत भट्टी गौत्र के लोगों यानि उनके पूर्वजों ने सबसे पहले जहाँ आज गौशाला डेरी है, इस जगह व गाँव मसूदपुर के मध्य स्थित गाँव थरवा खेड़ा में डेरा डाला। कई सालों तक भट्टी गौत्र के लोग यहाँ आबाद रहे। कुछ साल बाद यहाँ से करीब 6 किमी दूर उत्तर दिशा की और पलायन कर लिया और जहाँ आज गाँव लोहारी राघो आबाद है, यहाँ आकर ठहर गए। दावे के अनुसार भट्टी गौत्र के परिवारों ने उत्तर दिशा में घने बरगद के पेड़ों के नीचे डेरा डाल लिया। ये परिवार सालों तक इन बरगद के पेड़ों के नीचे ही आबाद रहे और धीरे-धीरे पेड़ों को काटकर इसी जगह पर अपना ठिकाना बना लिया। धीरे-धीरे इस जगह ने बस्ती का रुप ले लिया और फिर विशाल गाँव का। तस्वीर में दिखाई दे रहा यह ऐतिहासिक दरवाजा ठीक उसी जगह पर स्थित है जहाँ से गाँव आबाद होना शुरू हुआ था। गाँव भले ही 400 से 450 साल पहले आबाद हुआ हो लेकिन इस ऐतिहासिक दरवाजे का निर्माण लगभग 125 साल पहले मुसलमानों के समय ही हुआ है और इसके निर्माण में चूना पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। दरवाजे की जर्जर हालत के कारण ग्रामीणों द्वारा इसकी मुरम्मत की गई है लेकिन आज भी इस दरवाजे में कहीं-कहीं चूना पत्थर दिखाई दे रहा है जो इसके पुरात्तन होने का सबसे बड़ा प्रमाण है। आजादी से पूर्व गाँव में 70 फीसद से भी अधिक मुस्लिम आबादी होने के पीछे राजकुमार भट्टी का तर्क है कि जब उनके बुजुर्गों ने इस जगह को आबाद किया तो प्रारंभ में कुछ चुनिंदा मुस्लिम परिवारों ने ही यहाँ आकर शरण ली थी। यहाँ मुस्लिमों का वर्चस्व बढ़ाने व इसे मुस्लिम गाँव बनाने के लिए यहाँ के मुसलमानों ने आस-पास व दूर-दराज से भी सैकड़ों मुस्लिम परिवारों को यहां आबाद करवाया जिसका नतीजा यह हुआ कि गाँव में मुसलमानों की आबादी बढ़ती गई और आगे चलकर यह मुस्लिम बाहुल्य गाँव कहलाया।
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